1037 परिवारों में से 37 परिवारों ने श्रीमाली ब्राह्मणों के तर्क में सच्चाई समझ कर राजा की योजना में भाग नहीं करने का फैसला किया। वे एक समूह में अलग चला गया। उनका निर्णय मूलराज को सूचित.करने के बाद से वे एक समूह के साथ अलग चले गए, वे टोलाकिया औदिच्य ब्राह्मण के रूप में जाने जाते थे। बाकी औदिच्च्य सहस्र ब्राह्मणों के रूप में जाने जाते हैं। क्योंकि वे 1000 की संख्या में आये थे। अधिक होने से1000 ब्राह्मण परिवारों बोलबाला रहा। राजा मूलराज सोलंकी ने दुसरे पक्ष के ब्राह्मणों को समझाया। यह एक मजबूत राज्य को बनाए रखने और धर्म और सभ्यता के रूप में अच्छी तरह से व्यापार और राष्ट्र की समृद्धि को स्थिर करने के लिए जरूरी था। की उन सबको भी अपना बना कर रखा जाये इसके लिए जरुरी था। यह एक सर्वविदित तथ्य है कि सोलंकी राज्य के रूप में लगभग तीन सौ वर्षों तक समर्थ और समृद्धि से भरा फला, गुजरात रहा था। बाद में 1297 में भारत पर इस्लामी हमले के कारण नष्ट हुआ था।
वैदिक धर्म सबसे पुराना ज्ञात धर्म माना जाता है।। हिंदू धर्म का मानना है कि शाश्वत सत्य एक है। कई मायनों में यह व्याख्या की जा सकती हैं। अति प्राचीन काल से, हम सात ॠषीऔ कीही संतान है। इन ऋषियों का नाम’, जमदग्नि, गौतम, अत्री, विश्वामित्र, वशिष्ठ और भारद्वाज और कश्यप है। वे सप्त ऋषि के रूप में जाने जाते हैं। अगत्स्य आठवें ऋषि जिन्होंने वेदों की समझने में योगदान दिया है, के रूप में स्वीकार किये जाते है प्रत्येक ऋषि के सुप्रीम होने के लिए उनके अपने संस्करण है।
कालांतर में समय परिवर्तन के साथ साथ वे औदिच्य देश के विभिन्न भागो में वहां के राजे महराजे और अन्य आश्रय में चले गए। कुछ तीर्थ स्थानों पर पोरोहित्य का काम। या खेती किसानी करने लगे हें। गुजरात पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण द्वारा रुद्रमहालय और पाटन शहर विनाश होने के बाद विक्रम सम्बत 1353 के आसपास उस क्षेत्र के औदिच्य ब्राह्मण कड़ी चनस्मा, कर्णावती . जैसी जगह चले गए।
वेवाहिक संबंध
सहस्र औदीच्य ब्राह्मण समाज में समान्यता परिचित ओर सीमित विवाह संबंध बनते रहे हें। वर्तमान में आवागमन के साधन सशक्त होने से इन सम्बन्धों का विस्तार हो गया हे। फिर भी अधिकतर मामलों में सहस्र औदीच्य ही आपस में पर अलग अलग गोत्रों में संबंध करते हें। ईस्वी सन 1500-1600 के काल में समाज की जन संख्या देड़ लाख 150000 के लगभग हो गई थी। इसी समय गुजरात के छिन्न भिन्न होने से केवल इन सो वर्षों में ही दस से पंद्रह समूह बन गए थे। उनमें आपसी संबद्ध रोटी-बेटी व्यवहार चलता रहा था।
इसी काल में [1500-1600 इसवीं सन में] गुजरात में दुर्भिक्ष ओर आततायी आक्रमणों के कारणो से गुजरात छोड़करकई समूहों में अन्य स्थानो जाने लगे थे, एक बड़े समूह में 1200 गाडियाँ उज्जैन आई।
यह किवदंती प्रचलित हे, की इन बारह सो के विभाग वाले लोग किसी सेना में जबरन भर्ती किए गए थे, अथवा कोई दासता स्वीकार की थी, ओर किसी युद्ध में भाग लिया था। इसी कारण कट्टर पंथियों ने उनसे दंड प्रायश्चित मांगा, नहीं देने पर सिद्धपुर से घोषणा हुई कि, इनसे संबंध न रखा जाए। चूंकि ये बारह सो की बड़ी संख्या में थे, जो अन्य समूहो से अधिक थी, इसी कारण इनका नाम करण “बड़ी संभा ‘ या समवाय या “बड़ी औदीच्य” पड़ा ओर अन्य “छोटी संभा” या समवाय या “छोटी औदीच्य” कहलाने लगे। तब से अब तक कुछ कट्टर पंत्ती आपस में विवाह संबंध नहीं करते रहे हें।
वर्तमान में पुरानी पीड़ी को छोड़कर नई पीड़ी के लोग इस संभावाद से मुक्त होकर संबंध करने लगें हें। इसके अतिरिक्त वर्तमान में सभी औदीच्य ब्राह्मणो को अर्थात, सहस्र छोटी बड़ी दोनों संभा, टोलकीय, मारू, आदि आदि सभी औदीच्यों को एक किए जाने का प्रयास चल रहा हे। कुछ प्रगति वादियों का मानना यह भी हे की जब हा सब उदीच दिशा के नाम से औदीच्य कहलाए हें तो सभी उत्तर भारतीय औदीच्य हें, उनमें आपस में रोटी बेटी संबंध होना चाहिए। यह देखा भी जा रहा हे।