नेतृत्व विहीन अखिल भारतीय औदीच्य महासभा कार्यकारिणी की बैठक में जो घटित हुआ, वह सारे समाज को बार्मसार करने वाला था, ब्राहमणों के ब्रहमत्व को लजाने वाला था। वे कौनसी ताकतें है, जो औदीच्य ब्राहमणों की वृहद एवं सम्मानित संस्था अखिल भारतीय औदीच्य महासभा का मान, सम्मान, मर्यादा, भाईचारा, लोकतांत्रिक स्वतंत्रता, समाजोत्थान के पवित्र उद्देश्य, सब नष्ट भ्रष्ट कर, मटियामेट कर देना चाहती हैं? महासभा कार्यकारिणी की बैठक में अमर्यादित आचरण की बरसात होना, अनुशासन विहीन संस्कारों के साथ हाता पाई, झूमा झटकी की बिजली कड़कना, ये कहां के संस्कार है? भाई लोगों हम ब्राह्मण है, हम शास्त्रार्थ करने वाले है, मुद्दों पर बहस करने वाले है, नैतिकता सदाचार का पाठ पढ़ाने वाले हैं और अखिल भारतीय औदीच्य महासभा ऐसे ही ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व करने वाली सम्मानित संस्था है, इसमें अनीति, अनाचार, दुर्व्यवहार करने वाले कौन लोग घुस आए हैं? जो भी हुआ निंदनीय, घोर निंदनीय हुआ और जो हुआ, ऐसे लोगों के साथ हुआ, जिनके समाज के प्रति समर्पण को, समाज के बीच किए गए कामों को, समाज को दिए गए समय को सारे समाज ने देखा है, उन्होंने सवाल किए तो समाज के लिए, महासभा के अस्तित्व के लिए, समाज में शिथिल पड़ी गतिविधियों को प्राणवायु प्रदान करने के लिए किए, ऐसे प्रश्नों के बदले में यह स्थिति लाकर खड़ी कर देना, समूचे समाज को हतप्रभ कर गया है। यह स्थिति खड़ी कर देने वाले नहीं जानते कि अखिल भारतीय औदीच्य महासभा किस शिखर से फिसल कर रसातल में आकर खड़ी हुई है, जहां नेतृत्व विहीन महासभा कार्यकारिणी की बैठक में अशोभनीय कृत्य हो रहे हैं। महासभा को समाज की अनेक सम्माननीय गरिमामयी विलक्षण विभूतियों ने नेतृत्व प्रदान किया, महासभा के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया, इनमें से कुशल संगठक, चिंतक, विचारक, सम्माननीय रघुनंदन जी शर्मा के योगदान को समूचा औदीच्य ब्राह्मण समाज और अखिल भारतीय औदीच्य महासभा कभी विस्मृत नहीं कर सकते।
कारण रहा कि रघुनंदन जी शर्मा, के कार्यकाल में ही महासभा को सही अर्थों में अखिल भारतीय स्वरूप मिला था, रघु जी के कार्यकाल में औदीच्य महासभा मध्यप्रदेश के अलावा भी अन्य प्रान्तों में इकाई के साथ सक्रिय रही। रघुजी कुशल संगठक थे, उन्होंने महासभा का विकेंद्रीकरण किया, तहसील स्तर तक महासभा की इकाइयों का गठन किया, समाज के जन जन को, घर घर को महासभा से जोड़ने का क्रांतिकारी काम हुआ था रघुजी के कार्यकाल में। महासभा से औदीच्य ब्राह्मणों का जुड़ाव भावनाओं से भरा था, अपनेपन से भरा था और यह जादू आदरणीय रघु जी के नेतृत्व का था, इसी भावनात्मक अपनत्व के कारण महासभा को लेकर प्रत्येक सामाजिक बंधु अपने मन में चिंता रखता है तथा समाज में लोग महासभा के भविष्य को लेकर सवाल लिए घूमते रहते हैं। रघु जी के बाद महासभा के अध्यक्ष पद पर पटेल शिवनारायण जी मांगलिया आसीन हुए, उन्होंने महासभा की कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन करके रख दिया और महासभा का अपने ढंग से, अपने तरीके से संचालन किया। पटेल साहब ने अपने पैसे खर्च करते हुए महासभा के कार्यक्रम आयोजित किए, कार्यक्रम स्थलों तक सामाजिक बंधुओं को ले जाने के लिए परिवहन व्यवस्था, ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था की, पटेल साहब से पहले कभी किसी अध्यक्ष ने ऐसा नहीं किया। पटेल साहब ने महासभा के आयोजनों पर धन खर्च किया, लेकिन सामाजिक बंधुओं का महासभा से जो अपनत्व भरा जुड़ाव था उसे पोषित नहीं कर पाए। पटेल साहब के कार्यकाल में महासभा की राष्ट्रीय, प्रादेशिक, जिला तहसील स्तर तक की इकाइयों का गठन नहीं हो पाया, क्योंकि उन्होंने जिन लोगों का चयन किया था, वे महासभा के क्रियाकलापों का इमानदारी से क्रियान्वयन नहीं कर पाए, वे नाममात्र के पदाधिकारी रहे, अपने हाथ से अपनी पीठ थपथपाते रहे और महासभा को बोड़ा से दोहरा करते रहे। पटेल साहब द्वारा चयनित पदाधिकारी हार फूल मालाएं पहनते रहे, पोमाते रहे, लेकिन महासभा के प्रति जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर पाए और तो और महामंत्री भी बीच राह में इस्तीफा देकर चलते बने थे।
इस्तीफा देने का कारण क्या था? समाज आज तक इस प्रश्न का जवाब नहीं पा पाया है। पटेल साहब के दूसरे कार्यकाल में तो वर्षों बाद कार्यकारिणी का गठन हुआ और नवीन इकाइयों का गठन तो फिर भी हुआ ही नहीं। पूर्व के कार्यकाल में नियुक्त पदाधिकारी ही आज तक अपने आपको पदाधिकारी समझते रहे हैं, खास बात यह रही कि इन पदाधिकारियों को ना तो कभी अध्यक्ष ने पदाधिकारी समझा और ना समाज ने। दूसरे कार्यकाल के तीन वर्ष पूर्ण होने से पहले ही अध्यक्ष पटेल साहब का दुखद निधन हो गया और महासभा नेतृत्व विहीन हो गई। उनके निधन के लगभग छह सात माह बाद महामंत्री श्री योगेन्द्र पाण्डे ने महासभा की मीटिंग बुलाकर, मीटिंग में महासभा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री शिवनारायण जी जागीरदार को कार्यकारी अध्यक्ष मनोनीत करते हुए 6 माह के अंदर महासभा की साधारण सभा बुलाकर नये अध्यक्ष चयन का आश्वासन दिया था। 6 माह का समय गुजर जाने के बाद भी महासभा के नये अध्यक्ष चयन के लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया और एक कार्यकारिणी की बैठक बुला ली गई। वाट्सएप पर सूचना देकर बैठक कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा बुलाई गई, महासभा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, बैठक की सूचना पर कार्यकारी अध्यक्ष के हस्ताक्षर थे, प्रायः महामंत्री बैठक की सूचना दिया करते हैं। 6 जुलाई 2025 को आहुत बैठक से महामंत्री स्वयं नदारद रहे, सारा समाज आश्चर्य कर रहा है कि महासभा में ये हो क्या रहा है? पिछले एक डेढ़ साल से समाज महामंत्री की ओर टकटकी लगाकर देख रहा है और महामंत्री खुद महत्वपूर्ण बैठक से नदारद नजर आ रहे हैं। पता नहीं महामंत्री बीच मझधार में छोड़कर महासभा से दूर क्यों भाग रहे हैं? समाज के गलियारों में अफवाहों का बाजार गर्म है कि महामंत्री जी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया है, समाज की भावना तो यह है कि महामंत्री रणछोड़ ना बने, वे आगे आएं और समाज को बताए कि वे कौन से तत्व है जो समाज हितैषी काम करने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं?
जय गोविंद माधव